Saturday, October 5, 2013

सिद्धकुन्जिका स्तोत्रं Siddh Kunjika Strotram

सिद्धकुन्जिका स्तोत्रं
 
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् 
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥१॥
 
 कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं  रहस्यकम् 
 सूक्तं नापि ध्यानं   न्यासो   वार्चनम् ॥२॥
 
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् 
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥
 
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति 
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् 
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥
 
अथ मन्त्रः
 
 ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।  ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
 
इति मन्त्रः॥
 
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥
 
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै  निशुम्भासुरघातिन ॥२॥
 
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे 
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥३॥
 
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते 
चामुण्डा चण्डघाती  यैकारी वरदायिनी ॥४॥
 
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥५॥
 
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी 
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥
 
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी 
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥
 
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा 
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥
 
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे 
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे 
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति 
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् 
 तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा 
 
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती
संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् 

Jag Janani Jai Jai

 

जय अंबे गौरी Jai Ambe Gauri

श्री अंबा मां की आरती

जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥
ॐ जय अंबे गौरी…

Devi Kshama Prarthana, Na mantram no yantram

Picture of Durga Devi Apradh Kshama Stotram Hindi Lyrics Free Download

या देवी सर्वभुतेषु Ya Devi Sarvabhutesu

या देवी सर्वभुतेषु
Devi Durga
Devi Durga
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥१॥

रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः
ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥२॥
कल्याण्यै प्रणता वृद्धयै सिद्धयै कुर्मो नमो नमः
नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥३॥
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥४॥


अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः ॥५॥
या देवी सर्वभुतेषु विष्णुमायेति शब्दिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥६॥
या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥७॥
या देवी सर्वभुतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥८॥
या देवी सर्वभुतेषु निद्रारूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥९॥
या देवी सर्वभुतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१०॥
या देवी सर्वभुतेषु छायारूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥११॥
या देवी सर्वभुतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१२॥
या देवी सर्वभुतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१३॥
या देवी सर्वभुतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१४॥
या देवी सर्वभुतेषु जातिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१५॥
या देवी सर्वभुतेषु लज्जारूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१६॥
या देवी सर्वभुतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१७॥
या देवी सर्वभुतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१८॥
या देवी सर्वभुतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१९॥
या देवी सर्वभुतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२०॥
या देवी सर्वभुतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२१॥
या देवी सर्वभुतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२२॥
या देवी सर्वभुतेषु दयारूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२३॥
या देवी सर्वभुतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२४॥
या देवी सर्वभुतेषु मातृरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२५॥
या देवी सर्वभुतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२६॥
इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भुतानां चाखिलेषु या
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः ॥२७॥
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्व्याप्य स्थिता जगत्
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२८॥

Na Mantram No Yantram



 
 
 



श्री दुर्गा चालीसा Sri Durga Chalisa hi

श्री   दुर्गा   चालीसा
Devi Durga


नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥

निराकार है ज्योति तुम्हारी ।
तिहूं लोक फैली उजियारी ॥


शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥


रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥


तुम संसार शक्ति लै कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥


अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥


प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥


शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥


रुप सरस्वती को तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ॠषि मुनिन उबारा ॥


धरा रूप नरसिंह को अम्बा ।
प्रकट भई फाडकर खम्बा ॥


रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥


लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥


क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥


हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥


मातंगी धूमावति माता ।
भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥


श्री भैरव तारा जग तारिणि ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणि ॥


केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥


कर में खप्पर खड्ग विराजे ।
जाको देख काल डर भागे ॥


सोहे अस्त्र और त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शुला ॥


नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
तिहूं लोक में डंका बाजत ॥


शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥


महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥

रूप कराल कालिका धारा ।
सैन्य सहित तुम तिहि संहारा ॥


परी गाढं संतन पर जब जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥


अमरपूरी अरू बासव लोका ।
तब महिमा रहें अशोका ॥


ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥


प्रेम भक्ति से जो यश गावे ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ॥


ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
जन्म मरण ताको छुटि जाई ॥


जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हरी ॥


शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥


निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहीं सुमिरो तुमको ॥


शक्ति रूप को मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछतायो ॥


शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदंब भवानी ॥


भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दई शक्ति नहिं कीन विलंबा ॥


मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥


आशा तृष्णा निपट सतावें ।
मोह मदादिक सब विनशावें ॥


शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥


करो कृपा हे मातु दयाला ।
ॠद्धि सिद्धि दे करहु निहाला ॥


जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥


दुर्गा चालीसा जो नित गावै ।
सब सुख भोग परम पद पावै ॥


देवीदास शरण निज जानी ।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥